Thursday, February 25, 2010

सर्वेश्वर दयाल , गुलजार और इब्नबतूता

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने अपनी कविता मै मोरक्को यात्री इब्नबतूता जो वर्णन किया है उसको कभी भी कवियों ने अपनी रचनाओं मै जगह नही दी थी और जब सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने इसको अपनी कविता मै जगह दी थी इतिहास बताता है की उसने सर्वाधिक देशों की यात्रा की थी उसने एशिया के भारत ,चीन , म्यांमार, नेपाल तथा और भी पडोसी देशों की और उसने अपनी पुस्तक मै वर्णन भी किया है लेकिन सर्वेश्वर जी को पता नहीं था की इब्नबतूता इतना चर्चित हो जायगा लेकिन हमारी बोलीबुड का तो चुराने का इतिहास रहा है और जब गुलजार ने कविता की दो पंक्तिया चुरा ली तो बे कहते है की हमने गुनाह क्या किया है उन्होंने इश्किया फिल्म मै जो गीत दिया है "इब्नबतूता बगल मै जूता , पहनो तो करता है चुर्र चुर्र ................उड़ गयी चिड़ियाँ फुर्र
जबकि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता थी
"इब्नबतूता पहन कर जूता ,निकल पड़े तूफ़ान मै
थोड़ी हवा नक् मै भर गयी, थोड़ी भर गयी कान मै
कभी नाक को, कभी कान को ,मलते इब्नबतूता
इसी बीच मै निकल गया ,उनके पैर का जूता
उड़ते-उड़ते उनका जूता ,जा पहुंचा जापान मै
इब्नबतूता खड़े रह गए , मोची की दुकान मै

हमारे भारत देश मै जो शब्दों एवं कविता को चुराने का इक लम्बा इतिहास रहा है और गुलजार जी इसमे बहुत ही माहिर इंसान है इसलिए उन्होंने कविता की सिर्फ दो लेने ही चुराई है ताकि सर्वेश्वर दयाल को भी कुछ न देना पड़े और कापीराईटी अधिकार से भी बचा जा सके सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का भले ही इतिहास न रहा हो लेकिन इब्नबतूता का एक घुम्मकड़ यात्री के रूप मै इतिहास रहा है तथा हमारे गुलजार जी का भी उनसे बड़ा चुराने का (कविता ,पंक्तिया ,)इतिहास रहा है सो सर्वेश्वर दयाल जी इतिहास मै हर गये है

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