Thursday, August 29, 2019

हॉकी के जादूगर के जन्मदिवस और राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाईयां

हॉकी के जादूगर के जन्मदिवस और राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाईयां
हॉकी का जादूगर:-हॉकी के जादूगर के नाम से विश्वभर में मशहूर मेजर ध्यानचंद को कौन नहीं जानता। उनके मुरीद दद्दा ध्यानचंद भी कहते हैं। उनका हॉकी के प्रति जुनून ही था कि चंद्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस करते थे। इस कारण उनके साथी "चांद" कहकर भी पुकारते थे। अपने खेल के दम पर उन्होंने तानाशाह हिटलर को मुरीद बना लिया। उसने जर्मनी में बसने और खेलने को आमंत्रित किया, लेकिन सेना के इस मेजर में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। उन्होंने हिटलर को तत्काल मना कर दिया और कहा 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा।' उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में देश को हॉकी में गोल्ड मेडल दिलाया और देश का नाम ऊंचा किया। उन्होंने 22 साल के खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल किये जो विश्व रिकॉर्ड है। उनके बाद गोल्ड का सूखा आज तक बरकरार है।
लोग उनकी प्रतिभा पर शक करते थे। उनका मानना था कि हॉकी में चुम्बक है, जिससे गेंद चिपक जाती है। इस कारण हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था।
 पुरस्कार तो इस खिलाड़ी को बहुत मिले, लेकिन सरकारें देश के
इस कोहिनूर को "भारत रत्न' भी नहीं दे सकीं। हालांकि उनके जन्म दिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के 114वें जन्म दिवस पर उनके खेल को नमन, वंदन।
जन्म 29 अगस्त 1905 में जन्म, अवसान 3 दिसम्बर 1979।
राष्ट्रीय खेल दिवस की आपको बधाईयां।

Wednesday, August 28, 2019

हक़ की नींव रखने वाले बीपी मण्डल अमर रहें, 101 वीं जयंती पर उनको शत-शत नमन, वंदन।

हक़ की नींव रखने वाले बीपी मण्डल अमर रहें,
101 वीं जयंती पर उनको शत-शत नमन, वंदन।
बीपी मंडल अर्थात बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, संसद सदस्य और पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष। मोरारजी देसाई सरकार में 20 दिसम्बर 1978 को आयोग के अध्यक्ष बने और 2 साल तक गांव- गांव घूमकर रिपोर्ट तैयार की। इतना कठिन कार्य उन्होंने अपने बलबूते पर किया और 1980 में संसद रिपोर्ट रखी, जिसमें बताया कि 3,743 पिछड़ी जातियां हैं। जिनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। इन जातियों को मुख्यधारा में शामिल किये बिना देश का विकास सम्भव नहीं है। उन्होंने उन्होंने ओबीसी जातियों के विकास के लिए 40 सिफारिशों को लागू करने की बात कही। बीपी मण्डल ने जातिगत भेदभाव शुरू से देखा था। जब वे पढ़ने के दौरान हॉस्टल में रहते थे तो वहां पर पहले अगड़ी जातियों को खाना दिया जाता था और बाद में अन्य जातियों को। यहां तक कि स्कूल की टेबल पर अगड़ी जातियों को बैठाया जाता था। शेष को नीचे। इस अन्याय को भी उन्होंने स्कूल के दिनों में उठाया और वहां पर उन्होंने समानता का व्यवहार करवाया। मण्डल जिंदगी से जूझने वाले नेता थे। हालांकि 13 अप्रैल 1982 को इस जमीनी नेता की मौत हो गयी।
7 अगस्त 1990 को बीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की घोषणा कर दी। इससे नाराज होकर उप प्रधानमंत्री देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया और देश में अगड़ी जातियों विरोध करना शुरू कर दिया। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने आत्मदाह कर लिया। इस विरोध को कई राजनेता, कई संगठन सुनियोजित तरीके से हवा दे रहे रहे थे, क्योंकि कोई भी न तो हक़ देना चाहते थे और न ही इस पर बात करना चाहते थे। षड्यंत्र के तहत मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। 9 न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वे करवाया और पिछड़ी जातियों को अति पिछड़ा माना। सामाजिक, आर्थिक स्थिति दयनीय मानी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 16 नवंबर 1992 में अपने फैसले में मंडल आयोग की सिफारिशों को सही माना और कुछ सिफारिशों को लागू करने की बात कही। 8 सितंबर 1993 से ओबीसी वर्ग के लोगों को 27% आरक्षण देना शुरू हुआ। 20 फरवरी 1994 को वी राजशेखर ओबीसी आरक्षण के अंतर्गत नौकरी पाने वाले पहले अभ्यर्थी बने। 
लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि आज तक मण्डल की 40 सिफारिशों में से अधिकांश को माना ही नहीं गया। क्योंकि ओबीसी जातियां सोयी हुईं थी और धर्म के अंधविश्वास में लिपटी हुईं थीं। वो अपने हक के लिये संघर्ष नहीं कर सकीं। यहां तक कि इसका खामियाजा वीपी सिंह सरकार को भी उठाना पड़ा और बीजेपी ने सहयोग वापस लेते ही सरकार गिर गयी।
मंडल ने देश में जातियों की गणना तो की थी, लेकिन जनसंख्या की गणना नहीं हुई और आसान भी नहीं था। हैरानी की बात तो यह है कि 1931 से ओबीसी की जनगणना ठीक से ही नहीं की गयी। 1991, 2001 और 2011 में भी जनगणना की गई, लेकिन उसके आंकड़े नहीं बताये गये। न ही यह बताया गया कि कितनी जनसंख्या है और कितने लोग किस-किस प्रकार की नौकरियों में हैं। जो थोड़ी बहुत सच्चाई बाहर आयी है उसके अनुसार वर्तमान की स्थिति यह है कि प्रथम क्लास की नौकरियों में मात्र 2 से 2.5% और सेकंड, थर्ड और फोर्थ क्लास की नौकरियों में 4 से 5 % ही लोग हैं। दूसरों का हक खाने के लिए वह इस कटु सत्य को छुपाए रखना चाहते हैं। सरकारें 55% से अधिक इस आबादी का वोट पाकर सत्ता तो चाहतीं हैं, लेकिन हक़ देना नहीं चाहतीं हैं। यह आबादी जब तक मूर्ख बनीं रहें बनाए रखना चाहती हैं। आज भी जनसंख्या के सापेक्ष जो 27% आधा मिल रहा है, उसको भी सरकारों और सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने मिलकर खत्म कर दिया है।
हमारा मानना है की जब तक सभी वर्गों का विकास नहीं होगा, मुख्यधारा में नहीं लाया जाएगा। तब तक देश का विकास नहीं हो सकता।
जो लोग आरक्षण का विरोध करते हैं या आरक्षण खोर कहते हैं और इस पर बहस करना चाहते हैं तो उनसे कहना चाहता हूं कि सबसे पहले sc, st, ओबीसी की जनसंख्या के आंकड़े बताइए। नौकरियों में जितने हम हैं, उसके आंकड़े बताइए और जो बैकलॉग हैं उसके पदों को भरिए। जनसंख्या के सापेक्ष आरक्षण दीजिए जो जितना है उसको लीजिए। यदि यह नहीं करते हैं तो अपना तो विकास कर सकते हो, लेकिन संपूर्ण देश का विकास नहीं हो सकता और जब तक संपूर्ण देश का विकास नहीं होगा हम विकसित नहीं हो सकते।
आज तक जितना आरक्षण मिला उस परसेंट के सापेक्ष हम क्यों नहीं आ पाये। क्यों पिछड़ गए? कारण यह था कि एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत आरक्षण मिलने के बाद भी बहुसंख्यक समाज को रोका गया। क्योंकि व्यवस्था में जो लोग थे वह ऐसा नहीं चाहते थे।
यह भेदभाव कब तक?
बीपी मण्डल जी का जन्म 25 अगस्त 1918 बनारस, अवसान 13 अप्रैल 1982 पटना।
उनको नमन, वंदन।

RBI सरकार को देगी 1.76 लाख करोड़, ... क्या मंदी से उभर पायेगा देश ?

RBI सरकार को देगी 1.76 लाख करोड़,
... क्या मंदी से उभर पायेगा देश ?
बैंकों का बैंक भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने लाभांश और अधिशेष कोष से सरकार को 1,76,051 लाख करोड़ रुपए देने की घोषणा कर दी। यह निर्णय पूर्व गवर्नर जनरल विमल जालान की अध्यक्षता वाली 6 सदस्यों की सहमति के आधार पर लिया गया है। हालांकि रिजर्व बैंक भारत सरकार का ही उपक्रम है और सरकार को लगातार साल दर साल मदद भी करता है। लेकिन वह मदद अपनी शर्तों पर या यूं कहें कि अपनी क्षमता और देश के दूरगामी आर्थिक हालात को देखकर ही करता है। हालांकि आरबीआई ने अपने रिजर्व से से पिछले साल 50,000 हजार करोड़ रुपया सरकार को दिया था और पिछले 5 सालों में प्रति वर्ष 30 से 65 हजार करोड़ रूपया दिया है।
1962 में चीन युद्ध के दौरान आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर रिजर्व बैंक ने भारत सरकार को पैसा देने की पेशकश की थी, लेकिन युद्ध जल्दी खत्म हो गया गया और सरकार को पैसा की जरूरत नहीं पड़ी। दूसरी बार 1991 में रिजर्व लेने की स्तिथियाँ बनी थीं। हालांकि भारत सरकार ने विदेश में सोना बेचकर कर भरपाई पूरी कर ली। 1998 में पहली बार भारत सरकार ने रिजर्व लेने के लिए समितियां बनाई और विस्तार से चर्चा की गई कि किन परिस्थितियों में सरकार RBI से पैसा ले सकती है।  मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ही सरकार रिज़र्व को लेना चाहती थी, लेकिन अर्थशास्त्रियों और गवर्नर जनरल के विरोध के चलते यह नहीं हो सका। सरकार ने जब ज्यादा दबाव डाला तो तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया। बाद में सरकार के करीबी रहे शक्तिकांत दास गवर्नर बनाये गये। वर्तमान समय में कुछ समय तक तो सरकार देश में आर्थिक मंदी को ही नहीं मान रही थी, जबकि ऑटो सेक्टर, टैक्सटाइल सेक्टर सहित अन्य क्षेत्र ने जबरदस्त मंदी छा गई। लोगों की नौकरियां जानी शुरू हो गई हो गई। फैक्ट्रियां बंद होनी शुरू हो गई, तब सरकार सचेत हुई और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए रिजर्व की मांग की। इस निर्णय का विपक्ष और अर्थशास्त्री विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि यह रिजर्व विषम से विषम परिस्थितियों या युद्ध जैसे संकट में लिया जाता है। ताकि देश में बड़ा संकट खड़ा न हो और अभी ऐसी परिस्थितियों हैं ही नहीं। सरकार को रिजर्व लेने से पहले विभिन्न प्रकार के खर्चो में कटौती करना चाहिए था। लेकिन सरकार लेना ही चाहती है। उसका कहना है कि इस रिजर्व से अर्थव्यवस्था पूरी तरह पटरी पर आ जाएगी और देश आगे बढ़ चलेगा।
......
अब कई सवाल हैं:-
क्या मंदी से उभर पायेगा देश?
क्या मंदी झेल रहे विभिन्न सेक्टर फिर से चल पड़ेंगे?
क्या लाखों की संख्या में बेरोजगार हो चुके लोगों को फिर से रोजगार मिल पायेगा?
क्या पहले से बेरोजगार बैठे लोगों को नया रोजगार मिलेगा?
क्या अर्थव्यवस्था पटरी पर दौड़ने लगेगी?
क्या देश तरक़्क़ी के रास्ते फिर से बढ़ चलेगा?
...ये सभी प्रश्न समय के गर्भ में हैं।
जो बतायेंगे कि सरकार का निर्णय कितना सार्थक और उचित था ?
सरकारें आती और जाती रहेंगी। देश बहुत बड़ा है। उसके ही हिसाब से सोचें।

Wednesday, June 5, 2019

... आसिफा हम शर्मिंदा हैं

आसिफा हम शर्मिंदा है बकरवाल पिता युसूफ पूजबाला और मां नसीमा बीबी तुम गोद ली हुई बच्ची थी आंखों का तारा थी चिकने वाली चिड़िया थी इधर उधर दौड़ने वाली हिरण भी भैंसो घोड़ों को चलाने वाली 8 वर्षीय बेटी भी सिर्फ जमीन हथियाने की खातिर या गांव को खाली कराने के लिए तुम्हें कितना कुचला कितना हैवानियत से तोड़ा मरोड़ा सिर पर पत्थर पटके टांगे तोड़ दी गई रेप करने के लिए दवाइयां दी गई नशे के इंजेक्शन लगाते रहे और रेट वह 10 जनवरी 2018 की शाम कितनी बदसूरत रही होगी की घोड़े चराने गई आशिका नहीं लौटी संजी राम शर्मा जो रिटायर राजस्व अधिकारी था जो मंदिर का पुजारी था जो मुख्य साजिशकर्ता था उसका भतीजा नाबालिक था ने साजिश है उसको दमोह जिला और पहले दिन वह रेप करने में सफल हो गए उसका दोस्त मन्नू यह नहीं कर पाया फिर अपने चाचा विशाल को भी बुला लिया चाचा भतीजे और दीपक खजुरिया कितनी बार तुम हो मैं यह सोचकर सिहर जाता ही सिहर जाता हूं कौन होती है अंदर से होती है अंदर से तुम्हारे खून से सने कपड़े और मिट्टी को सबूत के तौर पर मिटा देंगे हिंदू राइट विंग एक्टिविस्ट के लोग तुम ही बस तुम्हें दफनाने पर विरोध दर्ज करते हैं क्या करें गरीबी का आलम देखिए मां बाप 7 मील दूर दूसरे गांव में दफना देते हैं तुम मर कर भी हम सबको शर्मिंदा कर गई दिन में तीन तीन बार रेप से तुम्हारी आंखें फट गई लेकिन दरिंदे की सोचना मरीना फटी ना इनको कोई रोका गया।
दरिंदों के पक्ष में तिरंगा रैली निकाली गई जय श्रीराम के नारे लगाए क्या जय श्री राम भी रो नहीं उठेगा ऐसी घटना को देख कर 9 अप्रैल 2018 को जब चार्ज शीट दाखिल करने के लिए अपराध शाखा पुलिस मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में गई तो दरिंदों के पक्ष के वकील नेता धार्मिक संगठन के लोग खड़े हो गए विरोध करने लगे दूसरे दिन 10 अप्रैल को 6 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद कोर्ट में चार्जशीट पेश हो सकी एक वन मंत्री और एक विधायक जो बीजेपी के थे कहते हैं हिंदुओं ने मुस्लिम लड़की से बलात्कार किया है इनको छोड़ दिया जाना चाहिए नहीं तो अंजाम बुरा होगा यह कौनसी दलील है यह कौन सी विकृत मानसिकता है मेडिकल रिपोर्ट कहती है की हत्या से पहले नशीली दवाइयां दी गई इंजेक्शन लगाए गए बलात्कार किया गया सिर पर पत्थर पटका गया और कुचलकर मारा गया गला भी दबाया गया था और क्या सबूत चाहिए और क्या गवाह चाहिए न्याय अन्याय ना रहा तो मौत दे दी जानी चाहिए माता पिता को भी इसके पक्ष में खड़े होने वाले हर नागरिक को हर उस सोच को मार दिया जाना चाहिए 12 जनवरी 2018 को हीरानगर पुलिस स्टेशन में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होती है 14 तारीख को लोहड़ी की रात तक उसके साथ बलात्कार होता रहता है 15 तारीख को संजय राम पुलिस के दीपक खजुरिया निर्णय करते हैं कि अब बच्ची को मार दिया जाना चाहिए 17 जनवरी को सब झाड़ियों में कुचला हुआ शरीर फटे हुए कपड़े खून से सने हुए कपड़ों के साथ मिलता है चोट के निशान थे पीएम रिपोर्ट सच्चाई उगल रही थी मामले में दोषी संजी राम शर्मा का भतीजा भतीजे का दोस्त मन्नू भतीजे का चाचा विशाल संजी राम शर्मा इंस्पेक्टर आनंद दत्ता s.i. दीपक खजुरिया कांस्टेबल सुरेंद्र वर्मा एचसी तिलक राज स्थानीय निवासी प्रवेश कुमार इन सब को रेप मर्डर सबूत नष्ट करने के आरोप में जेल भेजा गया अभी फैसला आना बाकी है देखते हैं कि बेटी आसिफा को यह हमारी अदालतें यह हमारा समाज न्याय दे पाता है कि नहीं कोई मुस्लिम है सिख इसाई है हिंदू है यादव है जाति का किसी का हो उसके आधार पर उसके साथ अन्याय नहीं होना चाहिए यही हमारा कानून यही हमारा संविधान यही हमारी न्याय प्रणाली कहती है फिर इंतजार रहेगा

Friday, May 31, 2019

मैं हार गया हूं, आपकी जीत में

इस व्यवस्था के बीच मैं हार सा गया हूं जिसमें आम आदमी को हक मिलना उतना ही कठिन हो गया है जैसे मृग मरीचिका। सवाल यह है कि इस हारने वाली व्यवस्था को बनाने में भले ही सदियों लग गए हो, लेकिन तोड़ेगा कौन। इसलिए मैं कहता हूं मैं हार सा गया हूं आपकी जीत में अलवर रेप के परिजन भी हारे हैं, हापुड़ गैंगरेप के परिजन भी हारे हैं। ऊना के दलितों भी हारे हैं। गौरी लंकेश हो, नरेंद्र दाभोलकर हो, एमएम कलबुर्गी हो, गोविंद पानसरे हो यह सभी लेखक भी तो हारे हैं न इनका क्या दोष था कि वह सिर्फ लिखते हैं। इसके लिए भी उन्हें हारना पड़ा। मैं हैरान हो जाता  हूं। रोहित वेमुला हो, नजीब हो या अभी हाल ही में हुई  घटना की पायल तड़वी हो। इनको अपने हक के लिए  लिए  मरना पड़ता है। इस व्यवस्था ने  इन होनहार को खो दिया  लेकिन मैं इसे  हारना कहता हूं। इसमें उनके परिजन हार गए हैं। नोटबन्दी की लाइन में लगे 128 लोग जो मौत की नींद सो गए थे क्या वह उनके परिजन हारे नहीं है। गौ मांस की तस्करी, गौ मांस के रखने या बच्चा चोरी के शक में  मरने वाले  लोगों के परिवार  भी हारे हैं। अखलाक, अकबर खान, दूध व्यापारी पहलू खान, अकबर खान सहित तमाम मॉब लिंचिंग में मरने वालो के परिवार भी हार गए। अब आप भले ही जीत गए हो लेकिन मैं कहता हूं कि 12000 किसान जो साल में मौत को गले लगा लेते हैं तमाम अव्यवस्थाओं के चलते वो भी हारे ही तो हैं। इस लोकतांत्रिक व्यवस्था मैं बहुत से लोग हारे हैं। इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट कहती है की 2014 से पहले गौ हत्या के शक में मात्र दो ही के सामने थे लेकिन 2014 के बाद 87 बड़े मामले सामने आए जिसमें 34 व्यक्तियों की मौत हुई 158 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। जिसमें 50 परसेंट मुस्लिम शिकार हुए। नोटबन्दी की लाइन हो, किसान हो, जवान हो, गटर सफाई करने वाले मजदूर हो सभी हारे ही तो हैं जिसमें वह मौत को गले लगाते हैं तब भी न्याय नहीं मिलता है। यह कैसी व्यवस्था। इस व्यवस्था में कौन जी रहा है और कौन मर रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र,  राजस्थान  सहित तमाम राज्यों में दलितों को शादी में  घोड़ी पर नहीं चढ़ने दिया जा रहा। शादी उनकी, घोड़ी उनकी, रोड सबका फिर भी उनके साथ अत्याचार किया जा रहा है। मारपीट, गाली-गलौज, अपशब्द, जातीय शब्द। ये भी तो हारा हुआ वर्ग है न। इस व्यवस्था का। बेरोजगारी 45 साल में सर्वाधिक हो जाएगी लेकिन फिर भी आप जीत गए तो आपको जीत की मुबारकबा, लेकिन हारे भी बहुत हैं इसमें कोई शक है क्या। जीतना अलग बात है हारना भी एक अलग संघर्षों है। आप व्यवस्था ऐसी बना चुके हैं या बन गई है जिसमें आम आदमी तड़प उठा है, कराह रहा है। इसलिए मैं कहता हूं कि इस व्यवस्था नहीं हम हार से गए हैं।

Thursday, May 30, 2019

... दर्द भरी रात

यह बात गुरुवार 30 मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक का एग्जाम देकर लौटे थे उमस भरी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रहा था समय तो निकल गया और ड्यूटी का टाइम शुरू हो गया लेकिन एक कहानी मुझे जिंदगी भर रुलाती रही कि संघर्ष और जीवन में कितना अंतर है कैसी का कितना महत्व हम जानते हैं आज मुझे नींद लेने की बहुत जरूरत थी क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर के दौरान हम कोतवाली उरई और ट्रेन से कानपुर पहुंचे कानपुर स्टेशन पर रात्रि होने के कारण फर्श पर मैंने विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागे तो सुबह हो चुकी थी और चिड़िया अपना गीत गा रही थी मैं फिर अपने गंतव्य के लिए रवाना हुआ मैं लगभग 40 50 हरजिंदर नगर पहुंचा जहां पर मेरा विद्या निकेतन इंटर कॉलेज में सेंटर था मुझे परीक्षा में 10:00 बजे से शामिल होना था पहले गया था लेकिन नींद मुझे वहां भी सता रही थी क्योंकि सफर में और उससे पहले भी सोया नहीं था अब ए जिंदगी तो नींद लेने की कह रही थी लेकिन सपनों का भारत या सपना का मेरा जीवन कैसा होगा मुझे नींद लेना नहीं दे रहा दरअसल हम 10:00 बजे वीडियो देखकर भी एग्जाम में बैठ गए एग्जाम दिया एग्जाम और स्थान रहा ठीक भी नहीं था अच्छा भी नहीं जाता कहा जा सकता था लेकिन एग्जाम से लौटने के बाद बस में जब ठीक दोपहर के 1:00 बज रहे होंगे वहां से सफर करते करते शाम 4:00 बजे तक हम वापस बुराई लौट चुकी थी वहां से हम यहां से दरोगा दामोदर सिंह के साथ हम कोच आ गए जहां पर रात्रि में मुझे ड्यूटी करनी थी लेकिन बिजली ने इतना परेशान किया कि मुझे गहरी नींद आने के बाद भी मैं सो नहीं पा रहा था पसीने से तरबतर था हर बार नींद लगती थी और बिजली अपना आंख में चोली का काम कर रही थी इस आंख में चोली मैं जो मैं परेशान हो रहा था और इस परेशानी के समय जब मैं लिख रहा हूं मुझे पता है कि जीवन का एक कष्ट है यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ि यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य  यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य के ही रवाना हुआ मैं लगभ यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य के ही रवाना हुआ मैं लगभग 4 यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य के ही रवाना हुआ मैं लगभग 40 50 मिनट बाद हरजिंदर नग यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य के ही रवाना हुआ मैं लगभग 40 50 मिनट बाद हरजिंदर नगर पहुंचा जहां प यह बात गुरुवार की मई 2019 की है जब हम कानपुर से मंडी निरीक्षक कभी जानते करते थे दुश्वारी रात मुझे आज भी याद है कि मैं सो नहीं पा रा समय तो निकल गया और दीपिका ठानी शुरू हो गया लिखने कहानी मैसेज इन्हीं वह लाती रही कि संघर्षमय और जीवन में खान तरह पैसे का कितना मातरम जानते हैं कि आज मुझे नींद लेने की भागवत क्योंकि मैं 2 दिन से सोया नहीं 29 तारीख को सफर की दौरान हम कोतवाली उरई और रांझे कानपुर पहुंच एकांकी स्टेशन पर रात्रि होने की कारण हर्षवर्धन विश्राम की 2 घंटे बाद जब जागी तो स्वच्छ गीत और चिड़ियां अपना गीत गारी मैं सिर्फ अपने गंतव्य के ही रवाना हुआ मैं लगभग 40 50 मिनट बाद हरजिंदर नगर पहुंचा जहां पर मेरा विद्या निकेतन इंटर कालेज सेंटर था मुझे परीक्षा में 10:00 बजे से शाम लो ना था बस पहले गया था लेकिन नींद मुझे वहां विस्ता रही थी क्योंकि मिश्रा फार्म और उससे पहले ही सोया नहीं था अबे जिंदगी तू नींद लेने की कह रही थी लेकिन सपनों का भारत सपना का नीरज जीवन कैसा हो मुझे नींद लेना मेरा दरअसल हम 10:00 बजे वीडियो देखकर जी एग्जाम एग्जाम दज मराठी कवि सम्मेलन

Tuesday, May 28, 2019

हैरान करते तुम युवा, विपिन की अनकही कहानी

हैरान करते तुम युवा, विपिन की अनकही कहानी

विपिन सिंह राठौर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं। पढ़ा-लिखा नौजवान जो कम बात करने का आदि हो कैसे डबल मर्डर कर सकता है। सोच कर स्तभ्ध था। लेकिन एक इच्छा भी जाग रही थी कि वे क्या कारण थे कि इतना बड़ा कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। मिर्जापुर माधौगढं जालौन। किशन किस्सू 9,10 वर्ष  , 97 हाईस्कूल प्रथम, 99 इंटर, बीएससी, mba लखनऊ, कानपुर सीपीएमटी कॉम्पटीशन डॉक्टरी लक्, ब्रजेन्द्र बड़े भाई, एकलौती लड़की 80 बीघा, पिता प्रधान मुन्ना सिंह , घटना  2009,10, शिमला तक आर्किल मटर बेचना