हॉकी के जादूगर के जन्मदिवस और राष्ट्रीय खेल दिवस की बधाईयां
हॉकी का जादूगर:-हॉकी के जादूगर के नाम से विश्वभर में मशहूर मेजर ध्यानचंद को कौन नहीं जानता। उनके मुरीद दद्दा ध्यानचंद भी कहते हैं। उनका हॉकी के प्रति जुनून ही था कि चंद्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस करते थे। इस कारण उनके साथी "चांद" कहकर भी पुकारते थे। अपने खेल के दम पर उन्होंने तानाशाह हिटलर को मुरीद बना लिया। उसने जर्मनी में बसने और खेलने को आमंत्रित किया, लेकिन सेना के इस मेजर में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। उन्होंने हिटलर को तत्काल मना कर दिया और कहा 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा।' उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में देश को हॉकी में गोल्ड मेडल दिलाया और देश का नाम ऊंचा किया। उन्होंने 22 साल के खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल किये जो विश्व रिकॉर्ड है। उनके बाद गोल्ड का सूखा आज तक बरकरार है।
लोग उनकी प्रतिभा पर शक करते थे। उनका मानना था कि हॉकी में चुम्बक है, जिससे गेंद चिपक जाती है। इस कारण हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था।
पुरस्कार तो इस खिलाड़ी को बहुत मिले, लेकिन सरकारें देश के
इस कोहिनूर को "भारत रत्न' भी नहीं दे सकीं। हालांकि उनके जन्म दिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के 114वें जन्म दिवस पर उनके खेल को नमन, वंदन।
जन्म 29 अगस्त 1905 में जन्म, अवसान 3 दिसम्बर 1979।
राष्ट्रीय खेल दिवस की आपको बधाईयां।
हॉकी का जादूगर:-हॉकी के जादूगर के नाम से विश्वभर में मशहूर मेजर ध्यानचंद को कौन नहीं जानता। उनके मुरीद दद्दा ध्यानचंद भी कहते हैं। उनका हॉकी के प्रति जुनून ही था कि चंद्रमा की रोशनी में प्रैक्टिस करते थे। इस कारण उनके साथी "चांद" कहकर भी पुकारते थे। अपने खेल के दम पर उन्होंने तानाशाह हिटलर को मुरीद बना लिया। उसने जर्मनी में बसने और खेलने को आमंत्रित किया, लेकिन सेना के इस मेजर में देशभक्ति कूट-कूटकर भरी थी। उन्होंने हिटलर को तत्काल मना कर दिया और कहा 'हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं जिंदगीभर उसी के लिए हॉकी खेलूंगा।' उन्होंने 1928, 1932 और 1936 में देश को हॉकी में गोल्ड मेडल दिलाया और देश का नाम ऊंचा किया। उन्होंने 22 साल के खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल किये जो विश्व रिकॉर्ड है। उनके बाद गोल्ड का सूखा आज तक बरकरार है।
लोग उनकी प्रतिभा पर शक करते थे। उनका मानना था कि हॉकी में चुम्बक है, जिससे गेंद चिपक जाती है। इस कारण हॉकी स्टिक को तोड़कर देखा गया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं था।
पुरस्कार तो इस खिलाड़ी को बहुत मिले, लेकिन सरकारें देश के
इस कोहिनूर को "भारत रत्न' भी नहीं दे सकीं। हालांकि उनके जन्म दिन पर राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है।
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के 114वें जन्म दिवस पर उनके खेल को नमन, वंदन।
जन्म 29 अगस्त 1905 में जन्म, अवसान 3 दिसम्बर 1979।
राष्ट्रीय खेल दिवस की आपको बधाईयां।